सद्गुरु ईशा फाउंडेशन

 

सद्‌गुरु के व्यक्तित्व का अनोखापन कई बार लोगों के मन में सवाल पैदा कर देता है कि आखिर वो हैं कौन वो खुद बता रहे हैं कि एक गुरु के रूप में वो सिर्फ एक द्वार के समान हैं। तो क्या है इस द्वार के उस पार

 

प्रश्न : जिन लोगों ने आपसे दीक्षा ली है उनके लिए चीजें इस तरह से घटित हो रही हैं जो हमारी समझ से परे है। मैं अब तक सोच रहा हूं बल्कि शायद और भी ज्यादा कि आप असल में कौन हैं और आप गुरु की तरह कैसे काम करते हैं ?

 

सद्‌गुरु : एक व्यक्ति के रूप मैं बहुत ही भयानक हूं। एक गुरु के रूप में मैं पूरी तरह खाली हूं। मैं अपने ज्ञान के कारण गुरु नहीं हूं। मैं गुरु इसलिए हूं क्योंकि मेरी अज्ञानता पूरी तरह असीम है। यही बात मायने रखती है।

 

मैं मंजिल नहीं हूं बस एक खुला दरवाजा हूं वहां तक जाने वाला दरवाजा जिसे हम आदियोगी कहते हैं उनके समूचे ज्ञान उनकी सारी संभावनाओं के लिए एक रास्ता। एक द्वार जिसका कोई द्वारपाल नहीं है।

 

अगर आपके भीतर कोई चीज असीम हो जाती है चाहे वह कुछ भी हो तो वह कारगर होगी। अगर आप असीम अज्ञान बन जाते हैं तो यह भी आपके लिए काम करेगा। अगर आप असीम प्रेम बन जाते हैं तो वह कारगर होगा। अगर आप असीम क्रोध बन जाते हैं तो वह भी काम करेगा। किसी भी चीज में असीमितता आपके लिए असरदार होगी।

 

मुझे अज्ञानता में असीम होना सबसे आसान तरीका लगा। मेरी सारी आध्यात्मिक प्रक्रिया शुरू ही इसलिए हुई क्योंकि मुझे एहसास हुआ कि मुझे कुछ भी नहीं पता है। यह कोई छोटी चीज नहीं है। जो असीम है वह छोटा नहीं हो सकता। अगर आप ज्ञान में असीम होने की कोशिश करें तो आप कितना जान सकते हैं आप कितना भी जान लें वह फिर भी सीमित ही रहेगा। मैंने अस्तित्व के इस चाल को इस युक्ति को समझा। जिसे ज्ञान कहा जाता है वह तो अज्ञानता है और जिसे अज्ञानता कहा जाता है वही असली ज्ञान है।

 

क्योंकि मैं एक खाली जगह की तरह हूं इसलिए मैं एक द्वार की तरह बन गया हूं ताकि आदियोगी मेरे जरिये काम कर सकें। अगर आप कहीं किसी सड़क पर आप मुझसे टकरा गए तो आप पाएंगे कि मेरा सिर खाली है। अगर आप व्यक्ति के पीछे देखेंगे तो आपको कुछ नहीं मिलेगा। जहां तक शख्सियत की बात आती है मैं हर कुछ सालों पर उसे बदलता रहता हूं। लोग इसे लेकर भ्रम और हैरानी में पड़ जाते हैं। मैं लंबे समय तक अपने आसपास रहने वाले लोगों को हमेशा चेतावनी देता रहता हूं कि मैं अपनी शख्सियत को बदलने वाला हूं। मगर इसके बावजूद कई लोग हक्के बक्के रह जाते हैं। कुछ मेरे साथ बने रहते हैं कुछ दूर हो जाते हैं।

 

अगर मैं थोड़ा और कठोर हो जाऊं तो यहां मेरे आसपास कोई भी नहीं होगा। अगर मैं थोड़ा और मधुर हो जाऊं तो कोई एक पल के लिए भी यहां से नहीं जाएगा। इसलिए मैं खुद को किनारे पर रखता हूं ताकि लोग मुझे सहन न कर पाएं मगर मेरे बिना रह भी नहीं पाएं। उनकी साधना के लिए यह जरूरी है।

 

अगर वे मुझे ज्यादा मृदुल यानी मधुर पाएंगे तो वे मुझे अपनी साधना से बड़ा बना देंगे जो अच्छा नहीं है। अगर वे मुझे ज्यादा कठोर पाएंगे तो वे अपनी साधना छोड़ देंगे यह भी अच्छा नहीं है। मैं ऐसी शख्सियत तैयार कर रहा हूं जिसमें दोनों पर्याप्त मात्रा में हों ताकि उनकी साधना कभी न छूटे।

 

मैं मंजिल नहीं हूं बस एक खुला दरवाजा हूं वहां तक जाने वाला दरवाजा जिसे हम आदियोगी कहते हैं उनके समूचे ज्ञान उनकी सारी संभावनाओं के लिए एक रास्ता। एक द्वार जिसका कोई द्वारपाल नहीं है। अगर आप उससे गुजरना चाहते हैं तो कोई आपको रोक नहीं सकता।

 

 

कौन है सद्गुरु

 

भारत के पचास सबसे प्रभावशाली लोगों में शुमार सद्गुरु एक योगी रहस्यवादी दूरदर्शी और न्यूयॉर्क टाइम्स के बेस्टसेलिंग लेखक हैं। सद्गुरु को 2017 में भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया जो असाधारण और विशिष्ट सेवा के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च वार्षिक नागरिक पुरस्कार है। वह दुनिया के सबसे बड़े जन आंदोलनए कॉन्शियस प्लैनेट सेव सॉइल के संस्थापक भी हैं जिसने 4 अरब से अधिक लोगों को प्रभावित किया है।

 

सद्गुरु सन्निधि छतरपुररू सद्गुरु सन्निधि इशा फाउंडेशन का दिल्ली केंद्र है जहाँ चयनित इशा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और यह ध्यान चिंतन शांति और आध्यात्मिक विकास के लिए एक उपयुक्त वातावरण प्रदान करता है। यह हराभरा गैर आवासीय केंद्र राष्ट्रीय राजधानी की भीड़भाड़ से एक त्वरित राहत प्रदान करता है।

 

सद्गुरु सन्निधि और इसके प्राण प्रतिष्ठित स्थानों का दौरा कोई भी सुबह 7 बजे से 10 बजे तक और शाम 5 बजे से 8 बजे तक कर सकता है। समय विशेष अवसरों जैसे नवरात्रि महाशिवरात्रि उत्सव एकादशी आदि के अनुसार भिन्न हो सकते है। यहाँ आगंतुक देवी सन्निधानम और मैडिटेशन हॉल जैसी जगहों का लाभ उठा सकते हैं। 

 

28 जुलाई गुरु पूर्णिमा के अवसर पर छतरपुर दिल्ली स्थित सद्गुरु सन्निधि में सद्गुरु सन्निधि पद यंत्र की स्थापना की गई। इस कार्यक्रम मे 1300 से अधिक लोगों ने भाग लिया साथ ही सैकड़ों स्वयंसेवक भी उपस्थित थे। दिन का समापन देवी दर्शन और प्रसाद वितरण के साथ हुआ। समारोह शाम 5 बजे से शुरू हुआ। स्थापना के बाद केंद्र परिसर में सन्निधि की एक भव्य शोभायात्रा निकाली गई और आरूपा हॉल के अंदर सन्निधि पूजा की गई जिससे एक जीवंत और भक्तिपूर्ण माहौल बना।

 

केंद्र में हर सोमवार अमावस्या और पूर्णिमा के दिन शाम 6 बजे से सन्निधि गुरु पूजा का आयोजन होगा।  

 

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