-महर्षि पाणिनि गुरुकुल ईटा एक में पवित्र श्रावण मास में चल रही शिव पुराण कथा 

 

द न्यूज़ गली, ग्रेटर नोएडा: शिव महापुराण के चौथे दिन स्वामी पुरुषोत्तमानंद महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि धर्म मे पुराणों को उच्च महत्व दिया गया है। पुराणों में भारतीय संस्कृति के आदर्शों, रीति-रिवाजों, और परंपराओं का विवरण होता है। ये आदर्श और परंपराएं समाज को एक संजीवनी और आत्मविश्वास प्रदान करती हैं। भारत समन्वय परिवार सनातन धर्म की अति महत्वपूर्ण धरोहर अर्थात हमारे पुराणों का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत करता है। इसी श्रंखला को आगे बढ़ाते हुए आज हम जानेंगे शिव पुराण के विषय मे। 

 

सबसे अधिक पढ़ा जाता है महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित शिव पुराण 

स्वामी पुरुषोत्तमानंद महाराज ने कहा कि महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित शिव पुराण सभी पुराणों मे सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला पुराण है। इस पुराण का संबंध शैष मत से है। इस पुराण मे आठ खण्ड और 24,000 श्लोक है। इस पुराण मे प्रमुख रूप से शिव भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं। त्रिदेवों मे इन्हे संघार का देवता माना गया है। जटाजूट धारी, गले मे लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघंबर, चिता की भस्म लगाए, हाथ मे त्रिशूल, सारे विश्व को डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं, इसलिए उन्हे ‘नटराज’ की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से ‘जीवन’ और ‘मृत्यू’ का भेद होता है। शीश पर गंगा और चंद्र-जीवन एवं कला के घोटक हैं। शरीर पर चित की भस्म – मृत्यू का प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अंत मे मृत्यू सागर मे लीन हो जाता है। 

 

शिव पुराण में शिव-भक्ति का मार्ग सुझाया गया है

रामचरित मानस मे तुलसीदास ने जिन्हे ‘अशिव वेषधारी’ कहा है, वे जन-सुलभ तथा आडंबर विहीन वेश को ही धारण करने वाले हैं। ऐसे परोपकारी और अपरिग्रही शिव का चरित्र वर्णित करने के लिए ही इस पुराण की रचना की गई है। इस पुराण  मे कलयुग के पापकर्म से ग्रसित व्यक्ति को मुक्ति के लिए शिव-भक्ति का मार्ग सुझाया गया है। इस पुराण मे आठ संहिताओं का उल्लेख है, जो मोक्ष कारक है- विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलास संहिता, वायु संहिता (पूर्व भाग) और वायु संहिता (उत्तर भाग)।

 

विद्येश्वर संहिता 

इस संहिता मे शिवरात्रि व्रत, पंचकृत्य, ओंकार का महत्व, शिवलिंग की पूजा और दान के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। शिव की भस्म और रुद्राक्ष का महत्व भी बताया गया है। इस संहिता मे उल्लेख है की अर्जित धन के तीन भाग करके – एक भाग धन वृद्धि मे, एक भाग उपभोग मे और एक भाग धर्म-कर्म मे व्यय करना चाहिए।

 

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