-प्रदीप डाहलिया ने कहा अरावली उत्तर भारत का प्राकृतिक कवच
-पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में निभाता है निर्णायक भूमिका
द न्यूज गली, ग्रेटर नोएडा: वर्तमान में अरावली को बचाने का मामला पूरे देश में चल रहा है। अरावली को बचाने के लिए बड़ी संख्या में लोग आगे रहे हैं। पर्यावरणविद् प्रदीप डाहलिया ने अरावली से होने वाले नुकसान के बारे में लोगों का जागरूक किया है। उनका कहना है कि अरावली पर्वत श्रृंखला केवल पहाड़ों की एक श्रृंखला नहीं है, बल्कि यह उत्तर भारत का प्राकृतिक कवच है। यह श्रृंखला हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में निर्णायक भूमिका निभाती है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज अरावली लगातार अवैध खनन, अतिक्रमण, अनियंत्रित शहरीकरण और प्रशासनिक उदासीनता के कारण गंभीर संकट में है। अरावली क्षेत्र वर्षा जल को रोकने, भूजल को रिचार्ज करने, तापमान को संतुलित रखने और रेगिस्तान के फैलाव को रोकने का कार्य करता है। अरावली यदि कमजोर होती है तो दिल्ली-एनसीआर सहित पूरा उत्तर भारत भीषण जल संकट, वायु प्रदूषण और जलवायु आपदा की ओर बढ़ेगा।
सरकार से मांग
प्रदीप का कहना है कि अरावली के बड़े हिस्से में अवैध खनन खुलेआम हो रहा है। पहाड़ों को काटकर, जंगलों को साफ कर, प्राकृतिक नालों को पाटकर कंक्रीट का जंगल खड़ा किया जा रहा है। कई स्थानों पर हरित क्षेत्र को गैर-ग्रीन घोषित कर दिया गया, जबकि सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) द्वारा अरावली क्षेत्र को संरक्षित रखने के स्पष्ट निर्देश मौजूद हैं। चिंताजनक तथ्य यह है कि विकास के नाम पर नियमों को ताक पर रखा जा रहा है। पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) की प्रक्रिया को कमजोर किया जा रहा है, जनसुनवाई औपचारिकता बन चुकी है और स्थानीय लोगों की आवाज को अनसुना किया जा रहा है। यह तथाकथित विकास दरअसल विनाश का दूसरा नाम है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि अरावली क्षेत्र में सभी प्रकार के अवैध खनन पर तत्काल पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए, अरावली को संरक्षित वन/इको-सेंसिटिव जोन घोषित कर प्रभावी ढंग से लागू किया जाए। स्थानीय नागरिकों, पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों को निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जाए।
