द न्यूज गली, ग्रेटर नोएडा: नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने यमुना प्राधिकरण के जमीन अधिग्रहण में हुई देरी और लापरवाही को लेकर गंभीर सवाल उठाए है। सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, धीमी कार्रवाई के चलते प्राधिकरण को 188.64 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। अर्जेसी क्लॉज लागू होने के बावजूद अधिग्रहण में ढिलाई बरती गई, जिससे जमीन की दरें बढ़ गईं और किसानों को अधिक मुआवजा देना पड़ा।

महायोजना 2031 का धीमा क्रियान्वयन
महायोजना 2031 के पहले चरण में 52 सेक्टर नियोजित किए गए, लेकिन केवल 29 सेक्टर ही विकसित हो सके। धीमी गति से विकास ने अतिक्रमण और अवैध निर्माण को बढ़ावा दिया, जिससे प्राधिकरण के नियोजित विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। फेज-2 में अलीगढ़, मथुरा, हाथरस, और आगरा जैसे चार शहरी केंद्र शामिल थे, लेकिन अब तक केवल अलीगढ़ और मथुरा का ही प्लान तैयार हो पाया है।

बिना जरूरत जमीन क्रय से करोड़ों का घाटा
सीएजी ने मास्टर प्लान के बाहर जमीन खरीदने पर प्राधिकरण अधिकारियों को कठघरे में खड़ा किया है। बिना आवश्यकता के जमीन खरीदने से प्राधिकरण को 160.23 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। हाथरस और बुलंदशहर जिलों में जमीन अधिग्रहण के प्रस्ताव भेजकर वापस लेने से 4.92 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

किसानों की चालाकी, प्राधिकरण की कमजोरी
अधिगृहीत जमीन का दाखिल खारिज न होने के कारण किसानों ने उस जमीन को बंधक रखकर ऋण ले लिया। इससे परियोजनाओं में देरी हुई।

सीएजी की सिफारिश: जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई
सीएजी ने सड़कों के निर्माण और ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने जैसे मामलों में भी प्राधिकरण अधिकारियों पर सवाल उठाए है और कार्रवाई की सिफारिश की है।