-छह घंटे की सर्जरी से सात माह की मासूम को दी नई जिंदगी, दीपावली पर अस्पताल से मिली छुट्टी
-डॉक्टरों की टीम करेगी एक साल तक बच्ची की जांच
द न्यूज गली, नोएडा: नोएडा के सेक्टर-30 स्थित पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ (चाइल्ड पीजीआइ) में एक अद्वितीय उपलब्धि हासिल की गई है। पहली बार संस्थान में सात माह की बच्ची की सफलतापूर्वक कैंसर सर्जरी की गई। जिससे चाइल्ड पीजीआइ ने रिकॉर्ड बना लिया। इस जटिल ऑपरेशन का नेतृत्व पीडियाट्रिक हीमेटो-आन्कोलॉजी विभाग की एचओडी प्रो. डॉ. राधाकृष्णन और ब्लड बैंक ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन व ब्लड बैंक विभाग के प्रो. डॉ. सत्यम अरोड़ा ने किया। 25 विशेषज्ञों की टीम के प्रयास से यह ऐतिहासिक सफलता मिली है।
दिल्ली की बच्ची ने दी कैंसर को मात
दिल्ली की निवासी सात माह की मासूम बच्ची को उसके माता-पिता छह माह पहले चाइल्ड पीजीआइ लेकर आए थे, जहां उसे न्यूरो ब्लास्टोमा कैंसर की पहचान हुई। डॉक्टरों ने इस गंभीर बीमारी के उपचार के लिए खून से कैंसर सेल्स को निकालने की रणनीति अपनाई। डॉ. राधा कृष्णनन ने बताया कि बच्ची का वजन मात्र 6.4 किलोग्राम था और इतनी कम उम्र के बच्चों में सेल्स को अलग करना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है।
छह घंटे में सफलता के साथ पूरी हुई सर्जरी
बच्ची के खून में सेल्स को निकालने के लिए आटोलोगस किया गया था। इसके लिए ब्लड बैंक में डा सत्यम अरोड़ा की टीम को तैयार किया गया था। सबसे महत्वपूर्ण है कि आटोलोगस में सेल्स को निकालने के लिए तेज कीमो देनी पड़ती है। इसमें बच्ची की जान को खतरा होता है। छह घंटे चली इस जटिल सर्जरी के दौरान डाक्टर सत्यम अरोड़ा और उनकी टीम ने बच्ची के खून से कैंसर सेल्स निकाले। हालांकि, बच्ची की नाजुक हालत को देखते हुए, डॉक्टरों ने विशेष सावधानी बरती। सफल सर्जरी के बाद कैंसर सेल्स को 18 डिग्री सेल्सियस पर फ्रीज किया गया और 18 दिन बाद इन्हें दवाइयों के साथ बच्ची के खून में चढ़ाया गया।
दीपावली पर घर लौटी मासूम
दीपावली पर बच्ची को अस्पताल से छुट्टी देकर उसके घर भेज दिया गया। यह चाइल्ड पीजीआइ के इतिहास में सबसे छोटी उम्र के मरीज का कैंसर ऑपरेशन है। टीम के इस सराहनीय कार्य के लिए अस्पताल के निदेशक डॉ. अरुण कुमार सिंह और मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. आकाश राज ने उन्हें बधाई दी। इस उपलब्धि को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पतालों के लिए भी एक मिसाल माना जा रहा है, क्योंकि इतनी छोटी उम्र में कैंसर के इलाज में सफलता कम ही देखने को मिलती है। बच्ची की रिकवरी को सुनिश्चित करने के लिए डॉक्टरों की टीम एक साल तक उसकी नियमित जांच करेगी।