द न्‍यूज गली, नोएडा: शहर में लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण ने आमजन की सेहत पर सीधा असर डालना शुरू कर दिया है। हालात ऐसे बन गए हैं कि जिला अस्पताल की ओपीडी से लेकर आईसीयू तक सांस की तकलीफ से जूझते मरीजों से भरने लगे हैं। डॉक्टरों के अनुसार कई मरीज ऐसे आ रहे हैं, जिनका ऑक्सीजन सेचुरेशन खतरनाक स्तर तक गिर चुका है और उन्हें तत्काल ऑक्सीजन या वेंटिलेटर सपोर्ट देना पड़ रहा है।

जिला अस्पताल के आईसीयू में बीते दो दिनों के भीतर नौ गंभीर मरीज भर्ती किए गए, जिनमें से दो की हालत नाजुक होने पर वेंटिलेटर पर रखना पड़ा। सोमवार को 60 वर्षीय महिला को बेहद गंभीर स्थिति में अस्पताल लाया गया। जांच में उनका ऑक्सीजन स्तर काफी कम पाया गया, जिसके बाद डॉक्टरों ने तुरंत ऑक्सीजन सपोर्ट शुरू किया। राहत की बात यह है कि सभी भर्ती मरीजों की स्थिति अब धीरे-धीरे बेहतर हो रही है।

65 से 75 तक पहुंच रहा ऑक्सीजन स्तर
आईसीयू प्रभारी डॉ. असद ने बताया कि प्रदूषण के चलते आने वाले अधिकतर मरीज सांस संबंधी बीमारियों से पीड़ित हैं। कई मरीजों का ऑक्सीजन सेचुरेशन 65 से 75 प्रतिशत के बीच दर्ज किया गया, जबकि सामान्य व्यक्ति में यह स्तर 95 प्रतिशत या उससे अधिक होना चाहिए। ऐसे मरीजों को बिना देरी आईसीयू में भर्ती कर इलाज शुरू करना पड़ रहा है।

ओपीडी में सांस के मरीजों की संख्या बढ़ी
जिला अस्पताल के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. अनुराग सागर के अनुसार ओपीडी में सांस की समस्या लेकर आने वाले मरीजों की संख्या में करीब 20 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। पहले रोजाना करीब 800 मरीज ओपीडी में पहुंचते थे, जो अब बढ़कर लगभग 1,000 तक हो गए हैं। इनमें से 250 से 300 मरीज खांसी, सांस फूलना और गले के संक्रमण की शिकायत कर रहे हैं।

स्वस्थ व्यक्ति भी नहीं सुरक्षित
यथार्थ अस्पताल के डॉ. अरुणाचलम एम ने बताया कि मौजूदा हालात में हवा की गुणवत्ता इतनी खराब है कि पूरी तरह स्वस्थ व्यक्ति भी लंबे समय तक बाहर रहने पर खांसी, सांस लेने में दिक्कत, आंखों में जलन और गले में खराश महसूस कर सकता है। उन्होंने कहा कि प्रदूषण सिर्फ फेफड़ों को ही नहीं, बल्कि पूरे शरीर को प्रभावित करता है और दमा, हृदय रोग, सिरदर्द व थकान जैसी समस्याओं को जन्म देता है। बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए इसका खतरा और भी अधिक है।

हृदय और डायबिटीज मरीजों पर ज्यादा असर
मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के डॉ. सुजीत नारायण ने बताया कि प्रदूषण बढ़ने पर ओपीडी में हृदय रोगियों की संख्या सामान्य दिनों की तुलना में करीब 30 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। पीएम 2.5, पीएम 10 और ओजोन जैसे सूक्ष्म कण फेफड़ों के जरिए रक्त में प्रवेश कर सूजन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बढ़ाते हैं, जिससे हार्ट फेल्योर, स्ट्रोक और अचानक कार्डियक अरेस्ट का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

पूरे शरीर को पहुंच रहा नुकसान
मेदांता अस्पताल के डॉ. मनु मदान के अनुसार प्रदूषण बढ़ने के बाद ओपीडी और इमरजेंसी में मरीजों की संख्या 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ गई है। उन्होंने बताया कि पीएम 2.5 और पीएम 0.1 जैसे कण रक्त प्रवाह में घुलकर उच्च रक्तचाप, हृदय विफलता और हार्ट अटैक जैसी गंभीर बीमारियों का जोखिम बढ़ा देते हैं।

विशेषज्ञों की चेतावनी
विशेषज्ञों का कहना है कि जिन लोगों को पहले से हृदय रोग और डायबिटीज है, उनके लिए प्रदूषण और भी खतरनाक साबित हो रहा है। पहले से मौजूद सूजन और शुगर असंतुलन के साथ मिलकर यह अचानक गंभीर हृदय घटनाओं की आशंका को कई गुना बढ़ा देता है। डॉक्टरों ने लोगों को अनावश्यक बाहर निकलने से बचने, मास्क का प्रयोग करने और लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करने की सलाह दी है।