द न्यूज गली, लखनऊ: साहित्यकार एवं पूर्व मुख्य सचिव डाक्टर शंभुनाथ ने कहा कि व्यथा कौंतेय की, उपन्यास वैसे तो काल्पनिक है पर इस उपन्यास के माध्यम से कौंतेय की व्यथा को रखने का प्रयास किया गया है। सूर्य पुत्र की अलौकिक तेजस्विता एवं देदीप्यमान कवच-कुंडल के साथ कर्ण के धरावतरण पर उसे प्रथम प्रतिकार किसी और से नहीं अपितु अपनी ही जन्मदात्री से मिलता है, जो उस नवजात शिशु को एक पिटारे में रखकर वेगवती नदी में प्रवाहित कर देती है और यहीं से प्रारंभ होती है। मनोरमा श्रीवास्तव कृत उपन्यास व्यथा कौंतेय की, का लोकार्पण हिंदी संस्थान-निराला सभागार में डाक्टर शम्भुनाथ ने किया। वरिष्ठ साहित्यकार व पूर्व सांसद उदय प्रताप ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डाक्टर बुद्धिनाथ मिश्र व वरिष्ठ रंगकर्मी सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ थे।
अनुपम रचना
डाक्टर बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा कि वैसे तो कर्ण के जीवन पर अनेक ग्रंथ लिखे जा चुके हैं, तथापि प्रस्तुत कृति को पढ़ने से भासित हुआ कि यह रचना अपने ढंग की अनुपम है। कर्ण पर रचित अब तक की सभी कृतियों से नितांत भिन्न है। उदय प्रताप सिंह ने कहा कि सूत-पुत्र कर्ण पर लिखे इस उपन्यास में उन्होंने सारे यथार्थों को यथावत् पिरोते हए भी उसको रोचकता में बहुत कुछ नया बना दिया है।कर्ण की जीवन-कथा में उसका सामाजिक तिरस्कार, उपेक्षा जन्य मानसिक पीड़ा का विशद वर्णन तो होगा-ही-होगा। लेखक ने वात्सल्य एवं ममता के ऐसे-ऐसे जीवंत शब्द चित्र इस उपन्यास में सामने रखे हैं, जो पाठक की रुचि को बाँधे रहते हैं।
सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ ने बताया कि यह उपन्यास निश्चय ही उसके साहस और साहित्यिक आत्मविश्वास के रूप में एक नई दृष्टि से देखा जाएगा। रचनाकार ने महावीर कर्ण के विषमतापूर्ण जीवनचरित को एक नई भावभूमि पर सर्वथा नवीन दृष्टिकोण से रेखांकित करने का प्रयास किया है।


