-शहर स्थापना के समय प्राधिकरण ने प्लाट आवंटन के लिए बुलाया था
-पैसा जमा कराने के बाद प्लाट देने से पीछे खींच लिया था कदम
द न्यूज गली, ग्रेटर नोएडा: न्यायालय में पहुंच कर लड़ाई लड़ते-लड़ते लोग हार मान लेते हैं, लेकिन ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की मनमानी के खिलाफ पिछले 25 साल से दो भाई लगातार डटे हुए हैं। उनका मुकदमा जिला उपभोक्ता फोरम, राज्य उपभोक्ता फोरम, हाईकोर्ट के बाद स्रप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। न्यायालयों के द्वारा मुकदमे की सुनवाई के बाद 40 आदेश जारी किए जा चुके हैं, लेकिन आश्चर्य कि बात है कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने एक भी आदेश पर अमल नहीं किया। राज्य उपभोक्ता आयोग द्वारा दिए गए आदेश का पालन न करने पर प्राधिकरण के सीईओ को 24 दिसंबर को राज्य उपभोक्ता आयोग में उपस्थित होना है। देखना है मुकदमें का अंत होगा या लड़ाई आगे भी जारी रहेगी।
यह था मामला
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की स्थापना 1991 में हुई थी। उस दौरान ग्रेटर नोएडा में चारों तरफ खेत हुआ करते थे। लोग यहां पर आने से भी बचते थे। लगभग 2000 में प्राधिकरण ने इंडस्ट्री लगाने के लिए पहले आओ पहले पाओ के आधार पर एक योजना निकाली। दो भाई महेश व नरेश मित्रा ने योजना में 1000 मीटर का प्लाट लेने के लिए आवेदन किया। योजना के तहत आवेदन करने वालों में वह 6 वें नंबर पर थे। प्लाट का आवंटन 750 रुपये स्क्वायर मीटर के हिसाब से होना था। दोनों भाईयों ने 20 हजार रुपये भी जमा किए। बाद में प्राधिकरण ने यह कहते हुए प्लाट देने से मना कर दिया कि अब प्लाट समाप्त हो गए। तब से दोनों भाई प्लाट लेने के लिए न्यायालय में लड़ाई लड़ रहे हैं।
जवानी से शुरु हुई लड़ाई बुढ़ापे तक आई
25 वर्ष से लड़ाई लड़ते-लड़ते नरेश व महेश मित्रा को बुढ़ापे की तरफ बढ़ने लगे हैं। उनका कहना है कि आटो मोबाइल का काम करने के लिए जमीन मांगी गई थी। प्राधिकरण से यह भी कहा गया था कि यहां पर लगभग 300 लोगों को रोजगार दिया जाएगा। न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश के बाद कई बार प्राधिकरण ने प्लाट देने की हामी भरी, बाद में पलट गए। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि प्राधिकरण प्लाट की आवंटन संख्या जारी करे, आवंटन संख्या भी जारी नहीं की गई है। उनका कहना है प्लाट लेने के लिए न्याय की लड़ाई लगातार जारी रहेगी।
