द न्यूज गली, ग्रेटर नोएडा : भट्टा पारसौल क्षेत्र में 14 साल पहले भूमि अधिग्रहण को लेकर हुए हिंसक प्रदर्शन के बाद अब सीबीसीआइडी मेरठ की टीम ने 27 किसानों के घरों पर कुर्की का नोटिस चस्पा कर दिया है। बुधवार को टीम ने भट्टा, पारसौल, सक्का और आछेपुर गांवों में पहुंचकर यह नोटिस लगाए। इसके साथ ही किसानों को एक माह के भीतर अदालत में पेश होने की चेतावनी दी गई है। अगर ये किसान अदालत में हाजिर नहीं होते, तो उनके घरों की कुर्की की जाएगी।

क्या था भट्टा पारसौल हिंसा का कारण?
भट्टा पारसौल हिंसा 14 साल पहले 2011 में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किसानों और प्रशासन के बीच हुई हिंसक झड़प के कारण हुई थी। इस झड़प में दो किसानों और दो पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी। उस समय कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी किसानों से मिलने पहुंचे थे, जो प्रशासन को चकमा देते हुए गांव में पहुंचे थे। हिंसा के बाद सैकड़ों किसानों पर हत्या, लूट, और बलवा जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे। इन आरोपों में कई किसानों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन बाद में वे जमानत पर रिहा हो गए।

किसानों की निराशा और कोर्ट में हाजिरी की कमी
घटना के बाद से इन आरोपों पर कोर्ट में केस चल रहा है, लेकिन इन किसानों की ओर से कोर्ट में हाजिरी नहीं दी जा रही है। सीबीसीआइडी इंस्पेक्टर हरेराम यादव ने बताया कि इन किसानों को कई बार कोर्ट में हाजिर होने के लिए कहा गया, लेकिन वे अब तक अदालत में पेश नहीं हुए है। अब इस मामले में कार्रवाई करते हुए उनके घरों पर कुर्की का नोटिस चस्पा किया गया है।

कुर्की के नोटिस से किसानों में हड़कंप
नोटिस चस्पा होते ही किसानों के बीच हड़कंप मच गया है। किसानों का कहना है कि उन्होंने लगातार सरकार से अपील की है कि उन पर दर्ज मामले समाप्त किए जाएं, लेकिन उनकी मांगों को अनसुना किया गया है। अब इन किसानों का कहना है कि वे कानून के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई के पक्ष में नहीं हैं, और उन्हें न्याय चाहिए।

किसान नेता का बयान
किसान नेता मनवीर तेवतिया, जिन्होंने 2011 में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विरोध की अगुआई की थी ने बताया कि 2011 में यह आंदोलन 10 से अधिक गांवों के किसानों के साथ मिलकर 20 दिनों तक चला था। इस आंदोलन में किसान मुख्य रूप से आबादी निस्तारण के मुद्दे पर अपना विरोध जता रहे थे।

सीबीसीआइडी की चेतावनी
सीबीसीआइडी की टीम ने इन 27 किसानों को एक महीने का समय दिया है, जिसमें उन्हें अदालत में हाजिर होना होगा। यदि ये किसान अदालत में हाजिर नहीं होते हैं, तो उनके खिलाफ आगे की कानूनी कार्रवाई की जाएगी। अब देखना यह होगा कि क्या इन किसानों को न्याय मिलेगा या वे और उनके परिवार इससे प्रभावित होंगे।