द न्यूज गली, नोएडा : नोएडा के चर्चित अंकित चौहान हत्याकांड में करीब एक दशक बाद आखिरकार इंसाफ की जीत हुई। दिल्ली स्थित CBI की विशेष अदालत ने सोमवार को इस बहुचर्चित मामले में दोषी करार दिए गए शशांक जादौन और मनोज कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई है। अदालत ने शशांक पर ₹70,000 और मनोज पर ₹50,000 का जुर्माना भी लगाया है।

यह फैसला उस दिन आया जब पूरे परिवार और समाज को न्याय की प्रतीक्षा करते-करते दस वर्ष बीत चुके थे। दोनों दोषियों को 20 सितंबर 2025 को दोषी ठहराया गया था।

10 साल पुराना है मामला
मूल रूप से मेरठ निवासी अंकित चौहान, नोएडा सेक्टर-62 स्थित एक सॉफ्टवेयर कंपनी में कार्यरत थे। उनकी पत्नी अमीषा, सेक्टर-135 में स्थित एक बहुराष्ट्रीय कंपनी (Accenture) में काम करती थीं।

2015 में हुई थी हत्या
13 अप्रैल 2015 को अंकित, अपनी पत्नी से मुलाकात कर दोस्त गगन दुधौरिया के साथ फॉर्च्यूनर कार से अपने सेक्टर-76 स्थित घर लौट रहे थे। बरौला बाईपास के पास हमलावरों ने उनकी कार को ओवरटेक कर रोका और अंकित पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं। घटनास्थल पर ही उनकी मौत हो गई, जबकि हमलावर मौके से फरार हो गए।

मामला गंभीर होने के चलते परिजनों ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर जांच CBI को सौंपी गई, जिसने 14 जून 2016 को मामला दर्ज किया। लंबी जांच के बाद 29 अगस्त 2017 को सीबीआई ने हत्या, डकैती का प्रयास, आपराधिक साजिश और सबूत मिटाने के आरोप में दोनों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की।

टैटू और कार नंबर बना गिरफ्तारी की कड़ी
करीब 25 महीने तक पुलिस और जांच एजेंसियों को चकमा देने वाले शशांक जादौन को हाथ पर बने टैटू और एक संदिग्ध वाहन नंबर के आधार पर एसटीएफ नोएडा ने गिरफ्तार किया। जांच में खुलासा हुआ कि शशांक बीटेक इंजीनियर था और आर्थिक तंगी में अपराध की ओर बढ़ा।

उसे रियल एस्टेट में नुकसान हुआ था। इसी दौरान उसकी मुलाकात पंकज नामक व्यक्ति से हुई, जिसने फॉर्च्यूनर लूट की योजना सुझाई। शशांक का संपर्क कुख्यात गैंगस्टर अनिल दुजाना के गुर्गे सत्ते से भी था, जिसने वारदात को अंजाम देने का रास्ता दिखाया।

वारदात से पहले और बाद में आरोपियों ने शराब पार्टी की थी। हत्या में प्रयुक्त पिस्टल पंकज की लाइसेंसी थी, जिसे बाद में गाजियाबाद के बाबा गन हाउस में बेच दिया गया।

CBI ने पेश किए ठोस सबूत, गवाहों के बयानों ने बढ़ाई ताकत
करीब 10 वर्षों तक चले इस मुकदमे में CBI ने हर मोर्चे पर मजबूती से पैरवी की। ठोस सबूत, गवाहों के बयान और डिजिटल फुटप्रिंट के सहारे अभियोजन पक्ष ने दोषियों को कानून के कटघरे तक पहुंचाया।

गाजियाबाद से शुरू हुआ यह मुकदमा बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर निष्पक्ष सुनवाई के लिए नई दिल्ली स्थानांतरित किया गया।