द न्यूज गली, नोएडा: सलेमपुर गुर्जर गांव के एक बच्चे को जन्म से ही एक आंख में मोतियाबिंद था। परिजनों ने सोचा कि समय के साथ यह समस्या ठीक हो जाएगी। इस भ्रम में उन्होंने बस घरेलू उपचार और दवाइयों से काम चलाया। जब स्थिति नहीं सुधरी, तब बच्चे को चाइल्ड पीजीआई ले जाया गया। वहां जांच में पता चला कि सफेद मोतियाबिंद अब काले मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) में बदल चुका है। जिससे बच्चे की आंख की रोशनी हमेशा के लिए चली गई।
समय रहते कराए ऑपरेशन
चाइल्ड पीजीआई के नेत्र विभाग के विशेषज्ञों का कहना है कि अगर समय रहते ऑपरेशन कराया जाता, तो रोशनी बचाई जा सकती थी। काले मोतियाबिंद में नसें सूख जाती है और ऐसी स्थिति में रोशनी वापस नहीं लाई जा सकती।
बच्चों में क्यों बढ़ रही है मोतियाबिंद की समस्या?
चाइल्ड पीजीआई के नेत्र विभागाध्यक्ष डॉ. विक्रांत शर्मा ने बताया कि हर महीने 8 से अधिक बच्चों के मोतियाबिंद के ऑपरेशन हो रहे है। पिछले छह महीनों में 50 से अधिक बच्चों के सफेद मोतियाबिंद के ऑपरेशन किए गए है। डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों में मोतियाबिंद के मुख्य कारण गर्भावस्था में टॉर्च संक्रमण, मधुमेह, पोषण की कमी या कुछ विशेष दवाइयां हो सकती है। हालांकि, कई बार इसका कारण स्पष्ट नहीं हो पाता।
समय पर ऑपरेशन क्यों है जरूरी?
डॉ. शर्मा ने बताया कि सफेद मोतियाबिंद का असर अगर अधिक हो तो तुरंत ऑपरेशन कराना चाहिए। ऑपरेशन में देरी से यह काले मोतियाबिंद में बदल सकता है। जिससे आंखों की नसें खराब हो जाती है और रोशनी वापस लाना नामुमकिन हो जाता है।
ऑपरेशन के बाद लंबा फॉलोअप जरूरी
ऑपरेशन के बाद बच्चे की देखभाल में भी लापरवाही नहीं होनी चाहिए। विशेषज्ञ बताते है कि ऑपरेशन के बाद 15 से 20 साल तक फॉलोअप जरूरी है। इस दौरान लेंस पर झिल्ली आने या चश्मे का नंबर बदलने जैसी समस्याएं हो सकती है। जिनके लिए डॉक्टर की नियमित सलाह आवश्यक है।
क्या है टॉर्च संक्रमण और इसका प्रभाव?
टॉर्च संक्रमण गर्भावस्था के दौरान मां से बच्चे में होने वाला संक्रमण है। इसमें पांच प्रमुख संक्रमण शामिल है—टोक्सोप्लाजमोसिस, रूबेला, साइटोमेगालोवायरस, हर्पीज, और अन्य। गर्भवती महिला में यह संक्रमण होने से बच्चे में मोतियाबिंद का खतरा बढ़ जाता है। डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों में मोतियाबिंद के शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज न करें। समय पर इलाज और ऑपरेशन से कई गंभीर स्थितियों से बचा जा सकता है। वहीं, गर्भवती महिलाओं को भी अपने स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि बच्चे को ऐसी समस्याओं का सामना न करना पड़े।